रेगिस्तान क्या, चलने वाली धूल भरी काली-पीली आँधी का सबक, मुश्किल के दौरान सिर झुकाकर उसका सामना करना चाहिए।” डांगी जी का संदेश

छत्तीसगढ़,, मेरा व्यक्तिगत अनुभव- बचपन के दिनों की बात है जब स्कूल से गर्मी की छुट्टियाँ हो जाने पर खेतों में बकरियाँ चराने गए हुए थे । हमेशा की तरह ही एक दिन दोपहर के बाद जब थोड़ा तापमान कम हो जाने पर अपनी बकरियों को घर से बाहर चराने के लिए निकले थे। लगभग 4-5 बजे की बात है पश्चिम दिशा में जब क्षितिज पर काली पीली आंधी तूफ़ान के लक्षण दिखने लगे। सबको पता है की ज़्यादा तर रेगिस्तानी इलाके में आंधी-तूफ़ान बड़े भयंकर हो जाते हैं । वे इतने तेज़ होते हैं कि राह में आने वाली हर चीज़ को उड़ा सकते हैं। उस दिन भी लग रहा था कि ऐसा ही एक तूफ़ान आने वाला है, देखते देखते आंधी तूफान हमारी और बढ ही रहा था । हम दो बच्चे साथ में थे । घर भी दूर था इसलिए दौड़ कर वापस भी नहीं जा सकते थे। बहुत डर भी लग रहा था की अब क्या होगा। हम दोनों ने अपने आपको बचाने की कोशिश शुरू कर दी थी। इसलिए मुझे अपनी दादी की कही गई बात याद थी जो अक्सर अपनी कहानी कहने के अंदाज में दैनिक जीवन के सबक बताया करती थी । उन्होंने एक बार बताया था की काली – पीली आंधी आने से घर से बाहर रहने से अपने आप को कैसे बचाना चाहिए । तूफ़ान को आते देख, मेरा साथी एक पेड़ के तने के पीछे छुपने के लिए भागा । इसे देखकर मैंने जोर से पुकारकर कहा, “पेड़ के नीचे मत छुपना यह बहुत ख़तरनाक है। दादी ने बताया था की बड़े-से-बड़े पेड़ भी आँधी-तूफ़ान में गिर पड़ते हैं। खुद को बचाने का सिर्फ़ एक तरीक़ा दादी ने बताया था की मुंह के बल ज़मीन पर लेट जाना चाहिए। हम दोनों ने ऐसा ही किया। कुछ समय बाद थोड़ा उजाला हो गया, आंधी तूफान गुजर गया तो देखा हम दोनों बच गए, क्योंकि हम दोनों बिना हिले-डुले ज़मीन पर लेटे हुए थे। जब तूफ़ान गुज़र गया, तो दोनों उठ खड़े हुए। यह अच्छा ही हुआ, क्योंकि जब तूफ़ान आया तो वह इतना तेज़ था कि आस पास के बड़े-बड़े पेड़ और मकान की छतें हवा में उड़ गई। लेकिन हम दोनों सुरक्षित थे। तब समझ आया की आंधी-तूफान की तेज़ी हमेशा ही ज़मीन से ऊपर ज़्यादा तेज़ होती है। इसीलिए ज़मीन पर इसका पूरा असर कभी नहीं पड़ता। लेकिन ऊंचे पेड़ इसकी पूरी ताक़त को झेलते हैं और इसीलिए तूफ़ानों के दौरान वे उखड़ जाते हैं। घास ज़मीन से ज़रा-सा ही ऊपर उठती है, और इसलिए तूफ़ान का उस पर असर नहीं होता। जीवन में भी इसका सबक यह मिलता है कि मुश्किल के दौरान सिर झुकाकर उसका सामना करना चाहिए। यह कुदरत का एक सबक है, जो हमें ज़िन्दगी के तूफ़ानों से बचने की राह दिखाता है। ऐसे समय में सबसे सीधा तरीका है कि विनम्र बने रहें । साथ ही अपने बडो़ की बातों को भी ध्यान से सुनना चाहिए उनके पास जीवन का अनुभव रहता है।
रतन लाल डांगी, आईपीएस छत्तीसगढ़