चाम्पा जांजगीर

छत्तीसगढ़ के संस्कृति अनुरूप बोरे बासी दिवस आज ,,स्वतंत्र पत्रकार अनंत थवाईत की विशेष प्रस्तुति पढ़े पूरी खबर के साथ कविता भी,,,

आज बासी दिवस पर विशेष….

हमर खानपान के जुन्ना संसकीरिति आऊ लोकगीत म समाय हे बासी

छत्तीसगढ़ सरकार हर एक मई के दिन ल बोरे बासी दिवस मनाय के घोसना करे हे । हमर प्रदेश के घोसना ल कमइया खवइया बनी भुतिहार करइया , पसीना बोहइया मनखे मन के सम्मान के घोषना कहे जाय त शायद कुछ गलत गोठ नइ होही ।
बासी के नांव सुनते ही आंखी म झुले लगथे पानी म बुड़ो के राखे रतिहा के भात । इही भात ल बासी कहे जाथे आऊ दिन म बुड़ो के राखथे तऊन भात ल बोरे कइथे । बासी ल हमर छत्तीसगढ म किसनहा आऊ बनी भूति करइया मनखे मन के जेवन के रुप म जादा जाने जाथे । आज भी गंवई गांव म मनखे मन बासी ल सुग्घर चाव से खाथे यदि हम कही कि बासी हर हमर जुन्ना खानपान के संसकिरीति ल जोर के राखे हे त शायद कुछु लबारी गोठ नइ होही । हमर छत्तीसगढ़ी लोकगीत ,जसगीत मया पीरीत के गीत म घलव लेखक ,गायक मन बासी के महिमा ल बखान करे हावय ।
“बटकी म बासी आऊ चुटकी म नून मैं गावत हांव ददरिया तैं कान देके सून ” “चटनी बासी के खवइया बनी भूति के करइया मै नांगर के जोतइया ” “बासी खाय ल परही टुरी नुन डार के पताल मिरचा के चटनी चटखार के” ” चइत के महिना दाई आबे मंझनी बोरे बासी संग म खवाहूं तोला ओ पताल चटनी” अइसन कतको गीत हावय जउन म हमर मया आऊ सरधा के भाव के संग बासी के महिमा समाय हावय।

जानकार मनखे मन बताथे कि बासी खाय के बड़ फाइदा हे । ये हर मनखे के तन मन दुनों ल स्वस्थ राखथे ।आऊ कतको बीमारी घलव ल दुरिहा राखथे।
नानपन म हमन बोरे बासी बड़ खाय हावन कभू पताल चटनी के संग म त कभू आमा के फकिया (अथान) त कभू नून मिरचा के चटनी के संग म । समय के संग संग अब हमरो खानपान के रंग ढंग बदल गे । आऊ अब इही बासी ल किसिम किसिम के जिनिस बनाके सऊखें सउंख म खाथन।
पानी म बुड़े रतिहा के बासी के पानी ल निथार के भात म बेसन नुन मिरचा धनिया पान गोंदली (प्याज) मिलाके भजिया बरा कस बनाके खाथन । हमर दाई हर बासी के पानी ल निथार के बांचे भात म नुन मिरचा तिल डार के बने मसल मसल के हाथ म फेंट के बरी बनाके घाम म सुखो देथे ।सुक्खा होय के बाद ओला तेल म छानके हमला खवाथे ये हर लाई बरी कस चुरुम चुरुम बड़ मिठाथे ।
चीला चटनी, फोहा, सुजी के हलुआ, ढोकला , पतंजलि के आटा नुडल्स, जइसे जिनिस ल बिहनिहा नाश्ता म देवइया हमर मयारु हर कभु कभु बासी के धुसका रोटी बनाके खवाथे बासी के भात म चाउर पिसान गोंदली नुन मिरचा आऊ कभू कभू बेसन ल मिलाके आगी के धीरे आंच म तावा म सेंक के धुसका रोटी बनाथे ।
संगवारी हो अब बासी के गोठ ल इही मेर ये दु चार आखर के संग छेवर करत हांव ….

पिज्जा बरगर वाला मन ल
बासी देखके भले आवय हांसी
तोरे महिमा अड़बड़ हावय
छत्तीसगढ़ के बोरे बासी
नुन पताल चटनी संग खावंव
नइ आवय मोला रोवासी
तोला खाके खेत खार जावंव
मोर भुइंया हे मथुरा काशी
खनाई कोड़ाई करंव मै
करंव लुआई बियासी
मोर ताकत ल तैं बढ़ाथस
नइ आय मोला थकासी
तोर महिमा बिदेश तक लम गे
मोर सुग्घर जेवन बासी

अनंत थवाईत
चांपा छत्तीसगढ़

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